Wednesday, December 30, 2015

महासमर 2015










 सभी क्षत्रियो का ह्रदय गहराईयों से आभार ओर आपके विस्वास को नमन जिन्होंने सम्पूर्ण भारत के इस महासमर भूमि शिविर को सफल बनाने के लिय अपनी जीवन का एक क्षण रक्त की एक बूंद अर्थ की एक पाई भाव का एक अंश भी दिया हो जो शारीरक रूप से पधारे जम्मूकश्मीर से कन्या कुमारी तक जिनका रजिस्ट्रेसन स्थान के अभाव मे रोक गया उनसे क्षमा चाहते है

Wednesday, December 16, 2015

राजपूताने का शौर्यपूर्ण इतिहास






देश (भारत) की आजादी के पूर्व राजस्थान 19 देशी रियासतों में बंटा था, जिसमें अजमेर केन्द्रशासित प्रदेश था। इन रियासतों में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और शाहपुरा में गुहिल, जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़ में राठौड़ कोटा और बूंदी में हाड़ा चौहान, सिरोही में देवड़ा चौहान, जयपुर और अलवर में कछवाहा, जैसलमेर और करौली में यदुवंशी एवं झालावाड़ में झाला राजपूत राज्य करते थे। टोंक में मुसलमानों एवं भरतपुर तथा धौलपुर में जाटों का राज्य था। इनके अलावा कुशलगढ़ और लावा की चीफशिप थी। कुशलगढ़ का क्षेत्रफल 340 वर्ग मील था। वहां के शासक राठौड़ थे। लावा का क्षेत्रफल केवल 20वर्ग मील था। वहां के शासक नरुका थे।
राजस्थान के शौर्य का वर्णन करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहाससार कर्नल टॉड ने अपने ग्रंथ ""अनाल्स एण्ड अन्टीक्कीटीज आॅफ राजस्थान'' में कहा है, ""राजस्थान में ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपली न हो और ऐसा कोई नगर नहीं, जिसने अपना लीयोनाईड्स  पैदा नहीं किया हौ।'' टॉड का यह कथन न केवल प्राचीन और मध्ययुग में वरन् आधुनिक काल में भी इतिहास की कसौटी पर खरा उतरा है। 8वीं शताब्दी में जालौर में प्रतिहार और मेवाड़ के गुहीलोत अरब आक्रमण की बाढ़ को अपना सर्वस्व लुटा कर न रोकते  तो सारे भारत में अरबों आक्रन्तावो की तूती बोलती । मेवाड़ के रावल जैतसिंह ने सन् 1234 में दिल्ला के सुल्तान इल्तुतमिश और सन् 1237 में सुल्तान बलबन को करारी हार देकर अपनी अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की। सन् 1303 में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने एक विशान सेना के साथ मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर हमला किया। चित्तौड़ के इस प्रथम शाके हजारों वीर वीरांगनाओं ने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने आपको न्यौछावर कर दिया, पर खिलजी किले पर अधिकार करने में सफल हो गया। इस हार का बदला सन् 1326 में राणा हमीर ने चुकाया, जबकि उन्हूने खिलजी के ग़ुलामशासक मालदेव चौहान और दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की विशाल सेना को हराकर चित्तौड़ पर पुन: मेवाड़ की पताका फहराई।
15वीं शताब्दी के मध्य में मेवाड़ का राणा कुम्भा उत्तरी भारत में एक प्रचण्ड शक्ति के रुप में उभरा। उसने गुजरात, मालवा, नागौर के सुल्तान को अलग-अलग और संयुक्त रुप से हराया। सन् 1508 में राणा सांगा ने मेवाड़ की बागडोर संभाली। सांगा बड़ा महत्वाकांक्षी थे। वह दिल्ली में अपनी पताका फहराना चाहता थे। समूचे राजपूताने को एकताबद्ध स्थापित करने के बाद उसने दिल्ली, गुजरात और मालवा के सुल्तानों को संयुक्त रुप से हराया। सन् 1526 में फरगाना के शासक उमर शेख मिर्जा के पुत्र बाबर ने पानीपत के मैदान में सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर अधिकर कर लिया। सांगा को विश्वास था कि बाबर भी अपने पूर्वज तैमूरलंग की भांति लूट-खसोट कर अपने वतन लौट जाएगा, पर सांगा का अनुमार गलत साबित हुआ। यही नहीं, बाबर सांगा से मुकाबला करने के लिए आगरा से रवाना हुआ। सांगा ने भी समूचे राजस्थान की सेना के साथ आगरा की ओर कूच किया। बाबर और सांगा की पहली भिडन्त बयाना के निकट हुई। बाबर की सेना भाग खड़ी हुई। बाबर ने राणासांगा से सुलह करनी चाही, पर सांगा आगे बढ़तेही गये। तारीख 17 मार्च, 1527 को खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ। मुगल सेना के एक बार तो छक्के छूट गए। किंतु इसी बीच दुर्भाग्य से सांगा के सिर पर एक तीर आकर लगा जिससे वह मूर्छित होकर गिर पडे। उसे युद्ध क्षेत्र से हटा कर बसवा ले जाया गया। इस दुर्घटना के साथ ही लड़ाई का पासा पलट गया, बाबर विजयी हुआ। वह भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डालने में सफल हुआ, स्पष्ट है कि मुगल साम्राज्य की स्थापना में पानीपत का नहीं वरन् खानवा का युद्ध निर्णायक था।
खानवा के युद्ध ने मेवाड़ की कमर तोड़ दी। अब राजस्थान का नेतृत्व मेवाड़ शिशोदियों के हाथ से निकल कर मारवाड़ के राठौड़ मालदेव के हाथ में चला गया। मालदेव सन् 1583 में मारवाड़ की गद्दी पर बैठे। उह्हूने मारवाड़ राज्य का भारी विस्तार किया। इस समय शेरशाह सूरी ने बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। शेरशाह ने राजस्थान में मालदेव की बढ़ती हुई शक्ति देखकर मारवाड़ के निकट सुमेल गांव में शेरशाह की सेना के ऐसे दाँत खट्टे किये कि एक बार तो शेरशाह का हौसला पस्त हो गया।इस युद्ध में राव जेता और कुपा ने केवल 5000 सेनिको की सहायता से 7 घंटे के समय मुगल सेना के 45000 सेनिको को गाजर मुली की तरह काट दिया था  परन्तु अन्त में शेरशाह छल-कपट से जीत गया। तभी तो मारवाड़ से लौटते हुए शेरसाह को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा - ""खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता।''
सन् 1555 में हुमायूं ने दिल्ली पर पुन: अधिकार कर लिया। पर वह अगले ही वर्ष मर गया। उसके स्थान पर अकबर बादशाह बना। उसने मारवाड़ पर आक्रमण कर अजमेर, जैतारण, मेड़ता आदि इलाके छीन लिए। मालदेव स्वयं 1562 में स्वर्गीय हो गये। उनकि मृत्यु के पश्चात् मारवाड़ का सितारा अस्त हो गया। इसके बाद अकबर और महाराणा प्रताप का शोर्य युग आरम्भ हुया और हुआ हल्दीघाटी का महान संग्राम जिसमे रामशाह तवर की पाच पीढ़ियों ने अपना बलिदान दिया और राणा की तलवार से आदमखोर बहलोल खा घोड़े सहित दो टुकडो में विभक्त हुआ ऐसा विश्व के किसी भी युद्ध में नहीं हुया हालाकि इस युध्ह के परिणाम महाराणा के विपरीत रहे पर विश्व के इतिहास जब जब भीषणतम युद्धों का जिक्र होगा तो हल्दीघाटी के बिना अधुरा रहेगा
अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का महाराणा प्रताप बाधक बने रहे। अकबर ने सन् 1576 से 1586तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ और महाराणा ने धीरे धीरे 70 % मेवाड़ अपने वापस अधीन कर लिया था स्वयं अकबर प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही गहलोत महाराणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप  जैसे नर-पुंगवों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए।

Thursday, December 3, 2015

समरभूमि बगरू जय राजपूतना संघ

जय राजपुताना संघ
समर भूमि  का आयोजन 26 से 28  दिसम्बर 2014 को  बगरू में हुआ..इसमें 11 राज्यों से 250 व् राजस्थान को मिलाकर 500से अधिक  समर योद्धाओं ने भाग लिया समर भूमिका आयोजन कई मायनो में सफल रहा  इसमें इतिहास को पुनर्लेखन की भी शुरुवात हुयी जिसके तहत भाई येश पुंडीर की शोधपूर्ण पुस्तक क्षत्रिय राजपूत इतिहास परिचय  का विमोचन भी ब्रिगेडियर प्रताप सिंह जी व् चन्देल साब येशपाल राना व् समस्त समर योद्धावो के हाथो हुया समर भूमिमें  कर्मधारा कितनी प्रज्वलित हुई इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जासकता है” वहा 250 से अधिक समर योद्धाओं ने  शराब  मांसहार नहीं खाने  दहेज नहीं लेने  और चारित्रिक पतन नहीं करने  की शपथ ली”.समर भूमि वास्तविकरूप से  शस्त्र शास्त्रऔर संस्कार की निर्माण की कर्मभूमि बना समर भूमि  शिविर पूर्ण रूप से क्षत्रित्व निर्माण का साक्ष रहा और रहेगाऔरसमर योद्धावो के जोश का अंदाजा इस बात दिसम्बर की कड़ाके की सर्दी में भी सुबह पाच बजे उठ कर शीतल ताजातरीन जलसे खुले स्नान कर लेते थे  

आगे से ये शिवि




















र “सम्पूर्ण क्षत्रित्व निर्माणशिविर” के नाम से जाने जायेंगे   इसके लिए आप सभी को साधूवाद   अभी आगे समर भूमि शिविर आयोजित करने के लिए6 राज्यों(राजस्थान को छोड़कर) में समरभूमि शिविर आयोजित करने के लिए समय डेट लेने का  समर  होरहा है.भाईयो  जय राजपुतानासंघ  के साथ हम चलकर हमविचार शक्ति को  कर्मवाद के साथ मिलाकर परिणाम तय करना सीखते है जो की हमारा पुरातन ज्ञान था . भाईयो आवो और साथ मिलकर कर्मधारा से इतिहास बनाये