Tuesday, March 24, 2015

क्षत्रियत्व का मूल अर्थ

क्षत्रिय और अन्य में मूल रूप से क्या फर्क होता है आज आपको पुरातन की घटना से बताने की कोशिस कर रहा हु

बात तब की है जब भगवान बुद्ध महभिनीसक्रमण से बोधि प्राप्ति के बाद जब राज्य नहीं लोटे तो महाराजा शुद्धोदन ने मंत्रियों के माध्यम से उनको सन्देश भेजा की हम भी प्राणी मात्र ही है आप एक बार हमारे यहा भी भिक्षा के लिए पधारे .तब गोतम ने निमत्रण को स्वीकार कर लिया और कहा की राजन से कहना एक दिन जुरूर आयेंगे.औरआखिरी में वो दिन आ ही गया जब भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा की कल राजधानी में भिक्षाटन होगा  इसकी सूचना महलो में हो गयी . और महलो को सुन्दर बदंनवार  सजाये गये सुन्दर कुमारी कन्याये मगल कलश लेकर स्वागातुर हो खडी हो गयी  राज सेवको  ने पल पल की खबर देना शुरू किया अब कुमार यहा आगये है   अब इतनी दूर है और अब राजधानी में पधार गये है अभी महलो से मुख्य द्वार कुछ दुरी पर ही था की की अपने शिष्यों से पूछा की  भिक्षा का समय हो गया है हा भगवान हो गया है शिष्यों ने उत्तर दिया तो उह्होने कहा  की महाराज  के यहा का निमत्रण तो है नहीं फिर कभी हो जाएगा इतना संकेत मिलते ही समस्त भिक्षु विभिन्न गलियों में चले गये   . और खुदबुद्ध भी भिक्षाम देहि कहने लगे और पास ही में एक शूद्र के घर पर टेर लगाई और वहा से भुने हुए आलू लेकर खाने लगे  तो महाराज शुधोधन को बहुत गुस्सा आया और बोंले ये क्या हो रहा है तो भगवान बुद्ध ने कहा की महाराज हमारी वंश परम्परा का पालन हो रहा है .आपका वंश तो हम है महाराज ने जवाब दिया  तो बुद्ध ने मुस्कराकर  जवाब दिया राजन ये आपका अज्ञान है हमारा वंश तो परमहंसो  का है,सत्पुरुषो का है परमतत्व दर्शियो का है हमारा शुद्धवंश येही है क्या अमीर क्या गरीब क्या उच्च क्या नीच सब बराबर है मानव मात्र का कल्याण  ही धर्म है  महाराज अवाक से  देखते रहे गये उहोंने तो सोचा था की कुमार आयेंगे तो बहला फुसलाकर राज्याभिषेक कर देंगे किन्तु यहा तो दलित अछुत सबके यहा भोजन करता है खेर जेसे तेसे तथागत राजमहल केसामने थे सिद्धार्थ की पत्नी महारानी यशोधरा ने  अपने पुत्र राहुल से कहा की पुत्र ये आपके पिताश्री है इनसे अपनीपैतृक सम्पति मागो  राहुल ने बुद्ध सादर नमन किया और पैतृक सम्पतिकि याचना की तथा गत ने पुछा वत्स क्या तुम  पैतृक सम्पति लेने के लिये वस्तुतः तेयार हो  प्रतिउत्तर मे राहुल ने सहमति दी तो उहोने अपनी मां से अनुमति ले लो पुत्र ने मां से पुछा तो महारानी बडी प्रसन्न हुई सोचा की शायद पुत्र मोह जाग गया है यशोधरा ने तुरंत हामी भर दी राहुल से तीन बार पूछने पर कहा की घर  में कोई अन्य बुजर्ग हो तो उनसे इजाजत लेलो महाराजा ने सोचा की बुद्ध पुत्र को देखकर भाव विहल हो गये लगते है ओर फिर राज्य संचालन ,राजकोष ,सेन्यसचालन आदि में कुछ महीने तो लगेगे ही तब तक कुमार को परावर्त किया जा सकता है उहोने ने भी हा का संकेत किया तो अंत में बुद्ध ने राहुल से अंतिम बार विचार करने को कहा और पूछा की कहा तुम इनकार तो नहीं कर दोगे  राहुल ने कहा क्षत्रिय हु वचनबद्ध हु ऐसा कभी नहि होगा तो बुद्ध् ने कहा आनद  ! इस बालक को आनद इस बालक को भिक्षु बना लो ! तुम्हारे पिता ने येही सम्पति अर्जित की है ,जो स्थिर है तुम्हारा निज धन है , जो अक्षुणहै जिसे प्राप्त कर लेने पर आत्मा सदा केलिए त्रप्त हो जाती है  राहुल ने अपने को तुरंत प्रस्तुतकर दिया राजमहल में हाहाकार मच गया राहुल की माता गुहार लगा रही है  महाराज बेहोश होगये माता पुत्र से निवेदन कर रही है पर राहुल ने कहा माता श्री में वचनबद्ध हु पीछे नहीं हट सकता हु  राहुल ने प्रवज्या ले ली  ये  क्षत्रित्यत्व ही है जिसने  अपने ही पुत्र के सर से राजमुकट की जगह संन्यास रख दिया जिनमे पुत्र मोह नहीं है एक ओर आचार्य द्रोण ! जिहोने अपने पुत्र को राज्य देकर कितने आनन्दित हुए  एक गाय केलिए कितना उधोग किया औरदूसरी ओर  महामानव बुद्ध जिहोने परम्परा में प्राप्त राजमुकट को अपने लोकिक पुत्र के सर से उतरवाकर भिक्षु बना दिया अगर वो क्षत्रियत्व से विहीन होते तो ऐसा कदापि नहीं कर सकते है  ये ही मूल फर्क है क्षत्रिय व् अन्य में की लोक कल्याण के लिए कितना भी बड़ा त्याग छोटा ही लगता है ( ये लेख जय राजपुताना संघ की क्षत्रित्यत्व निर्माण किताब का अंश है लेखक कु.भवर सिंह रेटा)

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